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Tuesday, October 17, 2017

17 अक्टूबर का इतिहास:-17 अक्टूबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ


17 अक्टूबर का इतिहास📕*

*📕 17 अक्टूबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ:-*

1870 - कलकत्ता बंदरगाह को एक संवैधानिक निकाय प्रबंधन के तहत लाया गया।

1888 - वैज्ञानिक थामस अल्वा एडिसन ने ऑप्टिकल फोनोग्राफ के पेटेंट के लिए आवेदन किया।

1912 - बुल्गारिया, यूनान और सर्बिया ने ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की।

1917 - प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने पहली बार जर्मनी पर हवाई हमले किये

1933 - प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन नाजी जर्मनी से अमेरिका चले गये।

1941 - द्वितीय विश्व युद्ध में पहली बार जर्मनी की पनडुब्बी ने एक अमेरिकी पोत पर हमला किया।

1979 - मदर टेरेसा को शांति के लिये नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

2000 - पश्चिम एशिया शांति वार्ता सम्पन्न, दोनों पक्ष बिल क्लिंटन के तीन सूत्रों पर सहमत।

2003 - चीन ने अंतरिक्ष में एशिया के पहले और रूस के बाद तीसरे देश के रूप में अंतरिक्ष में मानव भेजने में सफलता प्राप्त की। ब्रिटिश लेखक डीबीसी पियरे के पहले उपन्यास 'वेरनारन गॉड लिटिल' को प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार देने की घोषणा की गई। पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद का एक नेता गिरफ़्तार।

पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ़ की हत्या की साजिश रचने वाले तीन आरोपियों को 10 वर्ष की जेल की सज़ा सुनाई गई।

2004 - न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री क्लार्क भारत पहुँची। गुआंतानामो बे बंदीगृह में अमेरिकी सैनिकों द्वारा बंदियों को अमानवीय यातनाएँ दिये जाने का रहस्योद्घाटन।

2007 - आयरिश लेखिका एनी एनराइट को उनके उपन्यास 'द गेदरिंग' के लिए बुकर पुरस्कार प्रदान किया गया।

2008- एकाधिकार व प्रतिबंधित व्यापार आयोग ने निजी एअर लांइस, किंगफिशर और जेट एयरवेज के गठबंधन की जाँच के आदेश किए।

2009- हिंद महासागर में स्थित मालदीव ने पानी के अंदर दुनिया की पहली कैबिनेट बैठक कर सभी राष्टों को ग्लोबल वार्मिंग के ख़तरे से आगाह करने की कोशिश की।

*🌸17 अक्टूबर को जन्मे व्यक्ति :-*

1817- सर सैयद अहमद ख़ाँ, अलीगढ़ ओरिएंटल कॉलेज के संस्थापक,

1923 - शिवानी- सुप्रसिद्ध उपन्यासकार,

1955 - स्मिता पाटिल - हिन्दी फ़िल्मों की प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री,

1970 - अनिल कुंबले, पूर्व भारतीय क्रिकेटर,

1877 - सिस्टर यूप्रासिआ, भारतीय ईसाई महिला संत

1936 - दूधनाथ सिंह, हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार,

1970 - अनिल कुंबले, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी

*⭕️17 अक्टूबर को हुए निधन :-*

1906 - स्वामी रामतीर्थ - हिन्दू धार्मिक नेता थे, जो अत्यधिक व्यक्तिगत और काव्यात्मक ढंग के व्यावहारिक वेदांत को7 पढ़ाने के लिए विख्यात थे।

*📗 17 अक्टूबर के महत्त्वपूर्ण अवसर एवं उत्सव :-*

✴️राष्ट्रीय विधिक सहायता दिवस,
(सप्ताह)
⭕️विश्व आघात दिवस

@historyoftoday

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Thursday, October 5, 2017

क्या आप भारत की प्राचीन Secret Agencies के बारे में जानते हैं?

Know about Secret agencies in Ancient India in hindi


प्राचीन काल से ही जासूसी प्रणाली ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं. आप नहीं जानते कि गुप्त एजेंसियों द्वारा जासूसी करना एक आधुनिक व्यवस्था नहीं है. अति प्राचीन काल से, मनुष्य हमेशा अपने प्रतिद्वंद्वियों और विरोधियों के बारे में विशिष्ट जानकारी प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु रहा है.


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देखा जाए तो इस जिज्ञासा ने ही एक संस्था के जन्म दिया है जिसे 'जासूसी' (Spy) कहा जाता है और इस गतिविधि में शामिल व्यक्ति को 'जासूस' के नाम से जाना जाता है. 'जासूस' शब्द संस्कृत के 'स्पश' शब्द से निकला है जिसका अर्थ एक सावधान चौकीदार होता है. अतः यह स्पष्ट है कि वर्तमान में जो गुप्त सेवा का प्रयोग होता है वो प्राचीन भारत की ही देन है. प्राचीन काल में, कुछ विशिष्ट व्यक्ति लोगों की गतिविधियां और कार्यों पर लगातार नजर रखते थे. धीरे-धीरे, लोगों के इस समूह ने खुद को संगठित किया और जासूसी की कला को आगे बढ़ाया.

प्राचीन भारत में गुप्त एजेंसियों की उत्पत्ति कैसे हुई  


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- मानव ग्रंथों का सबसे प्राचीन ग्रंथ रिग वेद में भी जासूसी के बारे में उल्लेख किया गया है. जासूसी के बारे में सन्दर्भ मिस्र, बेबीलोन, अस्सैरिया, ग्रीस और चीन की प्राचीन सभ्यताओं में भी देखे जा सकते हैं.
- चीन के ऋषि सन त्सू ने जासूसी पर एक पुस्तक 'पिंग फा द आर्ट ऑफ़ वॉर' लिखी थी जो कि सबसे पहली पुस्तक मानी जाती है.
पुराणों के मुख्य देवताओं में से एक देवता वरुण को गुप्त सेवाओं अर्थार्त जासूसी का संचालक माना जाता है. 
- यहाँ तक की माघ, सबसे अधिक कृत्रिम और सुविख्यात कवि और विचारक ने कहा कि जासूसी की सहायता के बिना अंतरिक्ष यान भी अस्तित्व में नहीं हो सकता है।
- प्राचीन भारत में गुप्त एजेंसियों को उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं बल्कि शासन के एक उपकरण के रूप में माना जाता था। इसीलिए गुप्त एजेंटों को ‘राजा की आंख’ भी कहाँ जाता था.


भारतीय इतिहास में व्याख्या की गई है कि प्राचीन भारतीयों ने इस जासूसी की  कला में काफी विशेषज्ञता हासिल की थी. तकनीक और परिचालन पद्धति उनके द्वारा अपनाई गईं अत्यधिक उन्नत थीं और आज उपयोगी साबित हुई हैं.
वरुण से लेकर चाणक्य की गुप्त निति की बात करें तो कई महाकाव्य जैसे महाभारत, रामायण, पुराण, कालिदास, माघ और तमिल संगम साहित्य के साहित्यिक कार्यों के अभूतपूर्व ऊंचाइयों में भी इसका उल्लेख किया गया हैं.
चाणक्य को जासूसी, पाखंड, धोखा और असंतोष पैदा करने की उनकी तकनीक ने उन्हें कौटिल्य का शीर्षक दिया, जिसका मतलब है कुटिल. यहां तक कि कूटनीतिज्ञ और राजनेताओं ने चाणक्य के सिद्धांत को “ साम, दाम, दंड, भेद” का अनुसरण किया ताकि वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें. यहा तक कि चाणक्य की निति को भारत और इसकी मुख्य सूचना एजेंसी, द रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (आरएडब्ल्यू) द्वारा भी अपनाया गया था.

जासूसी और गुप्त एजेंसियों पर सिद्धांत


चाणक्य द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ को सभी जासूसी एजेंसियों द्वारा जासूसी का ब्लूप्रिंट माना गया है. जासूसी पर कुछ सिद्धांत इस प्रकार हैं:
(i) एजेंटों की श्रेणी: ख़ुफ़िया विभाग में दो विंग्स समस्था और संकारा हैं. समस्था के एजेंट राज्य के भीतर जासूसी करते थे, जबकि आवश्यकता के आधार पर संकारा के एजेंट एक राज्य से दुसरे राज्य में जाकर जासूसी करते थे. दूसरी तरफ आधुनिक युग में देखें तो दो पंखों के प्रमुख अपने संबंधित एजेंटों के संचालन, समन्वय और नियंत्रण को प्रशिक्षित करते थे और कोई भी विंग किसी के भी एजेंटों को नहीं जानती थी.
(ii) गुप्त एजेंटों की भर्ती: साहित्यिक ग्रंथों का अध्ययन गुप्त एजेंटों की भर्ती के लिए कोई निश्चित मानदंड नहीं बताता है परन्तु आधुनिक दुनिया में, गुप्त एजेंटों को उनकी शैक्षिक योग्यता, मार्शल कौशल, सेना / नौसेना, सीबीआई आदि में अनुभव के आधार पर शामिल किया जाता है.
(iii) नियंत्रण और पर्यवेक्षण: प्राचीन भारत में, गुप्त संगठनों के सभी कार्यों और फैसलों को व्यक्तिगत रूप से या तो सबसे विश्वसनीय मंत्रियों के जरिये या फिर खुद शासक द्वारा निगरानी की जाती थी. लेकिन राजा के लिए यह व्यक्तिगत रूप से संभालना मुश्किल था, इसलिए चाणक्य ने 'विदेश मामलों के विभाग' का गठन किया जिसमें मंत्रियां कमांडर-इन-चीफ के साथ-साथ बड़े फैसले लेने और राजा को सीधे रिपोर्ट करने के लिए समन्वय करेंगें.
जासूसों की श्रेणियां


Source: www.gabsinc.com


चाणक्य ने विभिन्न प्रकार के जासूस, उनकी भर्ती की प्रक्रिया, भूमिकाएं, जिम्मेदारियां, पुरस्कार और राजा के साथ उनके संबंधों को भी सूचीबद्ध किया है। 
उन्होंने नौ अलग-अलग जासूसों का उल्लेख किया था, प्रत्येक की विशिष्ट भूमिकाएं है जो कि दो श्रेणियों में विभाजित है। 
चाणक्य के हिसाब से पहली श्रेणी में 5 विभिन्न प्रकार के गुप्त एजेंट शामिल हैं, जिन्हें 'राजा की पांच आंख' के रूप में जाना जाता है. इन दीर्घकालिक स्थानीय जासूसों को सर्वोच्च श्रेणी का दर्जा दिया गया था और ये लोग राजा को सीधे रिपोर्ट करते थे। इन सभी को जानकारी प्रदान और अन्य कामों के लिए अलग-अलग भूमिकाएं मिली थी।


जासूसी की तकनीक :
भारत के प्राचीन ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा कार्यरत जासूसी की कुछ तकनीक इस प्रकार हैं:
(i) प्रेरणा और स्रोतों की भर्ती: किसी भी व्यक्ति से गुप्त जानकारी एकत्र करने का आसान और सीधा माध्यम था सेक्स, पैसा, बदला या शक्ति. इन कमजोरियों का अधिकतम फायदा उठाते हुए, गोपनीय जानकारी साझा करने के लिए प्राचीन भारत के जासूस अन्य राज्यों के नागरिकों का शोषण किया करते थे. 
(ii) घुसपैठ और उनके लक्ष्य का चयन: चाणक्य ने गुप्त एजेंटों को अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी:
- जो शासकों से असंतुष्ट हैं या उन्हें अपमानित या निर्वासित किया गया था.
- अपने व्यय के लिए जिनको मुआवजा नहीं मिला है.
- बलपूर्वक जिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई हो.
- जिनकी संपत्ति को जब्त कर लिया गया हो.
- जो गलत तरीके से कैद किये गए हो आदि.
(iii) डबल-एजेंट ऑपरेशनडबल एजेंट वह जासूस है जो विपक्ष के लिए काम करता है जबकि उनको नियुक्त करने वाले लोगों के प्रति निष्ठा का दिखावा करना होता है.
(iv) स्रोतों का भुगतानप्राचीन भारत में जासूसों को सम्मान, उपहार और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता होती थी.
इस लेख से यह पता चलता हैं कि कैसे प्राचीन भारत में गुप्तचर संस्थाएं प्रचलित हुई, चाणक्य की क्या-क्या कूट नीतियाँ थी और कैसे इन नीतियों का इस्तेमाल करना चाहिए आदि.

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